महोबबत,अमन और खुशिया (Love , Peace & Happiness)

दिलो मे है नफ़रत;
ना ज़ज़्बात ना इज़्ज़त,
ईमानदारी ना जाने कहा खो सी गयी?
इंसानियत ना जाने कहा  सो सी गयी,
रोता है यह दिल,  ये देख के की सब नफ़रत का घुट पिए जा रहे है
पता नही कैसे फिर भी हम जिए जा रहे है!!

अछाइया है कम , बुराइयाँ है सैलाब सी
धरती माता भी जी रही है बनके ज़िंदा लाश सी
दिल तो कल भी रोता था  ये सब देखकर,आज भी रोता है
आज भी ये दिल; नम आखो के साथ सोता है,

दिल टूटा है मेरा, होसला नही; एक दिन बेहतर संसार बनाएँगे
महोबबत,अमन और खुशिया चारो और फ़ैलाएँगे !!

-दीपक पाटनी

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